नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) की संविधान बेंच ने EWS आरक्षण को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर आज की सुनवाई पूरी कर ली है। अब मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच सुनवाई कर रही है।
आज सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि SC ये बार-बार कह चुकी है कि संसद आर्थिक आधार पर आरक्षण पर विचार करे। 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को मौलिक ढांचा की सीमा नहीं समझना चाहिए। संविधान संशोधन की पड़ताल तभी की जानी चाहिए अगर लगता है कि इससे संविधान की मूल भावना का उल्लंघन किया गया है। मेहता ने कहा कि संसद राष्ट्र की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। अगर संसद संविधान में कोई प्रावधान जोड़ता है तो उसकी वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
मेहता ने कहा कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व हमेशा आरक्षण का आधार नहीं होता है
मेहता ने कहा कि एक संविधान संशोधन मौलिक ढांचे को छू सकता है लेकिन इसे तब तक निरस्त नहीं किया जा सकता जब तक वो मूल ढांचे में बदलाव नहीं करे। इस पर जस्टिस भट्ट ने कहा कि वरिष्ठ वकील पालकीवाला ने मिनर्वा मिल्स मामले में कहा कि दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत के बदले 98 फीसदी होना चाहिए। संघवाद को संविधान की प्रस्तावना में नहीं बल्कि इसके मूल ढांचे में देखना चाहिए। कुछ संशोधन संविधान को मजबूत नहीं करते हैं बल्कि ये संविधान को नष्ट करते हैं।
तब मेहता ने कहा कि संशोधन कल्याणकारी राज्य को लक्षित कर किया गया है। चीफ जस्स ने कहा कि शक्तियों का बंटवारा भी मूल ढांचा है और न्यायिक समीक्षा ही मूल ढांचे पर अंतिम कथन है। मेहता ने कहा कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व हमेशा आरक्षण का आधार नहीं होता है। आर्थिक आधार होना चाहिए। उन्होंने इसके लिए दिव्यांग और जाट आरक्षण का उदाहरण दिया।
EWS उम्मीदवारों की ओर से वरिष्ठ वकील विभा दत्त मखीजा ने जब बोलना शुरु किया तो चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या आपको कभी परीक्षा में लाभ मिला है। तब मखीजा ने कहा कि अब EWS उम्मीदवार पात्र हो गए हैं। उन्होंने कहा कि ये मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
जिन परिवारों को आरक्षण नहीं मिला है वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीब रहे है
हमें संविधान के बदलाव को देखना होगा। समय के हिसाब से समाज आगे बढ़ा है, जैसे धारा 377 और ट्रांसजेंडर्स के अधिकार इत्यादि। उन्होंने कहा कि EWS का अधिकार संविधान की धआरा 21 से मिलती है और गरीबी एक मुख्य कारक है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि इस बात का कोई अध्ययन नहीं है कि जिन परिवारों को आरक्षण नहीं मिला है वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीब रहे हैं। जो चीज अस्थायी है उसे स्थायी नहीं कहा जा सकता है। एससी परिवार में जन्म लेना एक कलंक की बात होती है जो पीढ़ियों तक चलती है।
तब मखीजा ने कहा कि जाति आधारित आरक्षण का आधार ही ये है कि गरीबी सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की वजह से है। तब जस्टिस भट्ट ने कहा कि नहीं, ये जानबूझकर नहीं दिया जाता है। तब मखीजा ने पूछा कि क्या संविधान केवल जाति के आधार पर ही आरक्षण देता है। हमें नहीं लगता कि संविधान के रचनाकारों ने ऐसा सोचा होगा।
सुनवाई के दौरान 21 सितंबर को केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा बालाजी के फैसले के बाद आया जिसमें कोर्ट ने ये कहा था कि सामान्य वर्ग के लोगों का अधिकार खत्म न हो। उन्होंने कहा था कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के मुताबिक ये सरकार की जिम्मेदारी है कि बराबरी कायम रहे और उसी की वजह से EWS लाया गया।
EWS को 10 फीसदी आरक्षण
अटार्नी जनरल ने कहा था कि 50 फीसदी आरक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि SC, ST-OBC के लिए कुछ नहीं बदला है और वे लाभप्रद स्थिति में रहेंगे। उन्होंने कहा EWS को 10 फीसदी आरक्षण OBC, SC-ST के आरक्षण से स्वतंत्र है।
सुनवाई के दौरान 20 सितंबर को केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने EWS आरक्षण का बचाव करते हुए कहा था कि ये समाज के कमजोर तबकों के लिए है। उन्होंने कहा कि SC, ST-OBC अपने आप में पिछड़ी जातियां हैं। लेकिन सामान्य वर्ग में भी कमजोर तबके हैं जिन्हें संविधान की धारा 15(5) और 15(6) में मान्यता मिली है। उन्होंने कहा था कि EWS की देश में कुल आबादी 25 फीसदी है।
इस पर चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि क्या कोई आंकड़ा है जो ये बताए कि सामान्य वर्ग में EWS का फीसदी कितना है। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि 18.1 फीसदी। तब जस्टिस भट्ट ने कहा था कि आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी।
उसके बाद का क्या अपडेट है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि एक बड़ी संख्या जो मेधावी है उसे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आवेदन करने से वंचित हो सकते हैं। उन्होंने कहा था कि EWS आरक्षण SC, ST-OBC की हकमारी नहीं कर रहा है। ये पचास फीसदी से अलग है। इसमें मूल ढांचे के उल्लंघन का कोई मामला नहीं है।
याचिका में 2019 में EWS आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है
15 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि ये बराबरी के संवैधानिक मूल्य का उल्लंघन करता है और संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कभी चर्चा नहीं की गई है। वहीं EWS के समर्थन में दलील देनेवालों के मुताबिक ये आरक्षण काफी समय से अपेक्षित था और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने 8 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के लिए जो बिंदु तय किए थे। SC ने कहा था कि वो ये विचार करेगा कि क्या संविधान में 103वां संशोधन मूल ढांचे के विरुद्ध है जिसने सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण की शक्ति दी। कोर्ट यह भी तय करेगा कि क्या इस संशोधन ने गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थान में दाखिले के नियम बनाने की शक्ति दी। इसके अलावा यह कि क्या 103वें संशोधन के जरिए ओबीसी, एससी-एसटी को शामिल नहीं कर संविधान की मूल भावना का उल्लंघन किया गया।
चीफ जस्टिस यूयू ललित के अलावा इस संविधान बेंच ने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट, जस्टिस बेला में त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल हैं। याचिका में 2019 में EWS आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने इस मामले में चार वकीलों को नोडल वकील नियुक्त किया है जो EWS आरक्षण और मुस्लिमों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में आरक्षण देने वाली याचिकाओं में समान दलीलों पर गौर करेगी।