वाराणसी: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में महाशिवरात्रि की भव्य छटा देखने को मिल रही है। पूरी काशी शिवमय हो गई है। इस दौरान बाबा विश्वनाथ के धाम से लेकर गंगा तट का क्षेत्र हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंजता रहा। भगवान शंकर के अनेक रूप है। अलग-अलग रूप में अलग-अलग महात्म है। फिर काशी तो भगवान शिव की नगरी ही है। यहां तो कण-कण में शंकर विराजमान है। ऐसे में इस महा तीर्थ काशी के उत्तर-पूर्व में स्थित है। महामृत्युंजय महादेव का विशाल मंदिर। वो महामृत्युंजय जिन्हें मृत्यु पर भी विजय हासिल है।
अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाते हैं महामृत्युंजय एच
ऐसे महादेव का दर्शन तो दूर, स्मरण मात्र से मृत्यु तुल्य कष्ट समाप्त हो जाता है। जो चल-फिर नहीं सकता उसके कानों में महामृत्युंजय नाम जाने मात्र से वह स्वस्थ होने लगता है, बाबा दरबार का चरणामृत जिसके गले से उतर गया वह मृत्यु शैय्या से उठ जाता है। अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाने वाले हैं महामृत्युंजय, इस मंदिर में भोर से ही भक्तों का तांता लगा हुआ है।
हजारों साल पुराना मंदिर है।
काशी के दारानगर मोहल्ले में महामृत्युंजय का मंदिर स्थित है। मंदिर के महंत पंडित सोमनाथ दीक्षित बताते हैं कि यह हजारों साल पुराना मंदिर है। यहां मृत्युंजय महादेव का विग्रह स्वयंभू है। इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है। पहले यहां जंगल था और बाबा का मंदिर भी मड़ई में था। कालांतर में मड़ई से पत्थर का मंदिर बना। फिर दादा जी पंडित केदार नाथ दीक्षित और उनके पिता ने मिल कर यहां गर्भगृह का जीर्णोद्धार कराया। चांदी का दरवाजा लगाया गया। चांदी का अरघा बना। बताया कि दुनिया भर में कहीं भी महामृत्युंजय का दूसरा मंदिर नहीं है।
मंदिर परिसर में धनवंतरी कूप भी है।इस मंदिर में महामृत्युंजय महादेव का शिवलिंग तो है ही, इस विशाल परिसर में धनवंतरी कूप है जहां भगवान धनवंतरी ने कई जड़ी-बूटियां और औषधियां डाली थीं। इस कूप का जल पीने से पेट रोग से ले कर तमाम तरह के घाव ठीक होते हैं। इसके अलावा अनेक तरह की व्याधियां दूर होती हैं।इस परिसर के छोर पर अगर महामृत्युंजय है तो दूसरे छोर पर महाकालेश्वर पुत्र रूप में अवस्थित हैं। यहीं नागेश्वर महादेव हैं तो स्टांग भैरव का विग्रह भी है। गोस्वामी तुलसी दास द्वारा स्थापित हनुमान जी का मंदिर है, प्राचीन पीपल का वृक्ष है तो शनिदेव का मंदिर भी है।