टीबी के मरीज़ों की पहचान करने में ग्रामीण महिलाएं करती हैं सहयोग : उषा

छपरा

पूर्णिया, 10 जुलाई: देश के हर नागरिक ने ठाना है कि वर्ष 2025 तक टीबी की घातक बीमारी को जब तक मिटायेंगे नहीं तब तक चैन से बैठेंगे नहीं। देश से टीबी संक्रमण जैसी बीमारियों को जड़ से मिटाने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय सहित राज्य स्वास्थ्य विभाग भी सजग व प्रतिबद्ध है। इस बीमारी को समय रहते खत्म किया जा सकता है। इसीलिए मन में किसी तरह की कोई कुंठा की भावना नहीं रखें। समाज को टीबी मरीज से भेदभाव नहीं बल्कि हमदर्दी रखना चाहिए। लगातार 9 महीने तक दवा खाने से इस रोग को खत्म किया जा सकता है।

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ मोहम्मद साबिर ने बताया कि टीबी को लेकर हमारे समाज में गलत अवधारणाएं प्रचलित हैं, जिन्हें दूर किया जाना अत्यंत आवश्यक है। टीबी को लेकर अब भी एक तरह का डर बना हुआ है। यही डर इसके मरीजों के साथ भेदभाव का कारण बनता है। उन्होंने बताया कि टीबी रोगियों के प्रति भेदभाव रोकने के लिए जन सहभागिता जरूरी है। ज़िले की जीविका समूह की दीदियों द्वारा सामुदायिक स्तर पर लगातार बैठकें आयोजित कर इसे जड़ से मिटाने के प्रयास में सहयोग कर रही हैं। जीविका समूह की दीदियों द्वारा डोर टू डोर भ्रमण कर टीबी मरीजों की खोज की जा रही है तथा टीबी बीमारी की पहचान संबंधी जानकारियों को लोगों बीच दी रही है।

जीविका समूह से जुड़ी रुपौली प्रखंड की स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वच्छता की शिक्षक साधन सेवी (एचएनएसएमआरपी) उषा कुमारी विगत कई वर्ष पूर्व जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं। उन्हें रुपौली प्रखंड के 6 पंचायतों की जिम्मेदारी दी गई हैं। जिसमें कांप, लक्ष्मीपुर गिरधर, नाथपुर, भउआ परवल, विजय लालगंज एवं विजय मोहनपुर शामिल है। वह इन पंचायतों की लागभग सात हज़ार से ज़्यादा महिलाओं को जोड़ कर टीबी, कोविड-19, फाइलेरिया, पोषण, गर्भवती एवं धातृ महिलाओं, माहवारी स्वच्छता सहित कई अन्य बीमारियों से संबंधित जानकारी रे रही हैं। इतना ही नहीं, जरूरत आने पर अपने साथ स्थानीय अस्पताल ले जाकर या भेजकर उपचार कराने की भी व्यवस्था करती हैं। वह इसे ही अपनी सेवा व धर्म मानती हैं। जीविका समूह से जुड़ी हुई महिलाओं द्वारा मरीजों का समुचित ध्यान रखा जाता हैं। क्षेत्र भ्रमण कर टीबी मरीजों के दवा सेवन, उनके खानपान, रहने व सोने के तरीकों, मास्क के उपयोग सहित कई अन्य तरह की दिनचर्या की जानकारियां भी दी जाती है। इसके साथ ही मरीजों को नियमित रूप से दवा का सेवन करने की सलाह भी दिया जाता है।

उषा कुमारी ने बताया कि टीबी उन्मूलन के प्रयासों को मजबूती देने के उद्देश्य से महीने में 10 से 15 बैठकों का आयोजन कर स्वास्थ्य, पोषण एवं स्वच्छता से संबंधित जागरूकता अभियान चलाया जाता है। टीबी सहित विभिन्न संक्रमण से संबंधित बीमारियों से बचाव के लिए जागरूकता अभियान भी चलाती हूं। अगर कोई मरीज मिलता है तो उसको स्थानीय अस्पताल ले जाकर या भेज कर उसका उपचार कराती हूं। सामुदायिक स्तर पर कार्य करने वाली महिलाओं द्वारा मरीज़ों की पहचान की जाती है। अभी तक दो मरीज की पहचान की गई है। जिसका निःशुल्क उपचार स्थानीय अस्पताल में चल रहा है। प्रधानमंत्री निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी के मरीजों को प्रति माह 500 सौ रुपए सहायता राशि दी जाती हैं। ताकि वह पौष्टिक आहार का सेवन कर तंदुरुस्त रह सकें।

टीबी रोगियों की पहचान
-15 दिनों तक लगातार खांसी होनी चाहिए।
-बलगम में खून का आना।
-सोने के बाद रात्रि में ज़्यादा पसीना आना।
-क़भी-क़भी लगातार बुख़ार का आना।

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