नई दिल्ली/द्वारका, 13 अक्टूबर: स्वदेशी मेला 2025 के मंच पर एक विशेष क्षण तब देखने को मिला जब दिव्यांग कलाकार कुशध्वज ने अपनी मधुर आवाज़ में बिहार के लोक भजन प्रस्तुत किए। उनकी गायकी ने ऐसा वातावरण बनाया कि पूरा मेला परिसर श्रद्धा और उत्साह से भर उठा। दर्शक न केवल संगीत में डूब गए, बल्कि उनकी अद्भुत लगन और आत्मविश्वास से प्रेरित भी हुए।
कुशध्वज ने “छठ गीत” और “ ऐसी लगी लगन ” जैसे लोक भजनों से समां बांध दिया। उनकी प्रस्तुति में न केवल सुरों की मिठास थी, बल्कि बिहार की मिट्टी की खुशबू भी झलक रही थी। दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने संगीत साधना को अपना जीवन बना लिया है, और उनका हर सुर इस बात का प्रमाण था कि सच्ची प्रतिभा के लिए शरीर की सीमाएं मायने नहीं रखतीं।
मेला में उपस्थित दर्शकों ने तालियों की गूंज से उनका स्वागत किया। कई दर्शक भावुक होकर बोले — “कुशध्वज जी की आवाज़ में भक्ति और आत्मबल दोनों का संगम है।”
कार्यक्रम के आयोजकों ने भी उन्हें मंच पर सम्मानित किया और कहा कि ऐसे कलाकार भारत की ‘स्वदेशी आत्मा’ का सच्चा परिचय कराते हैं।
स्वदेशी मेला का यह क्षण न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध था, बल्कि समाज को यह सन्देश भी दे गया कि यदि इच्छा शक्ति प्रबल हो, तो कोई भी बाधा मनुष्य को रोक नहीं सकती।